भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बिटिया / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:40, 12 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लालित्य ललित |संग्रह=समझदार किसि...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हम अचानक
बड़े हो गए
क्या समय बलवान है
कब काले बालों से
सफेदी झरने लगी
कब बिटिया बड़ी हो गई
कब पिता जी
बूढ़े हो गए
‘‘पापा आप तो बूढ़े हो गए’’
देखो तो जरा
कलम सफेद दिखने लगी
युवा बिटिया
बताती है
बुजुर्ग पिता
सोच रहा है
क्या वाकई सफेदी
झरने लगी है
यानी
बिटिया बड़ी
हो गई