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आदत / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित
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कभी वो दिन
वो पल
याद करो
जब तुमने
किसी से
झूठ बोला था
या
कंकर से
खंभेल पर लगा बल्ब तोड़ा था
मुझे मालूम है
तुम्हारी स्मृति-कलश में
पहले ही इतनी
फाइलें हैं
जिसे तुम ‘डिलीट’
करना नहीं चाहते
ऐसा ना करो
जो अनुपयोगी है
उसे हटा दो
जो कोमल है
उपयोगी है
उसे ही संजोकर रखो
जिसे आप-हम संजो नहीं -
सकते
यह हमारी आदत में -
शुमार हो चुका है
जिसे हम बदलना नहीं चाहते