भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

खोने और पाने का रोना / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:47, 16 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम कुछ नहीं कहती,
कहती है तुम्हारी आंखें!

आज तुम बहुत रोयी हो
जितना कि प्रेम को खो कर
रोयी थी तुम,
उतना ही रोयी हो तुम आज
प्रेम को पाकर !

देखो अब भी
उलझी हैं आंखें तुम्हारी
सोचती हुई-
सच क्या है-
खोना
या पाना!