भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर कभी / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:50, 16 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=उचटी हुई नींद / ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जानता था कवि
राजकुमारी का प्यार
वह नहीं है

जानता था कवि
इस का अंत-
कल्पनाओं के टूटे पंख
कुछ बेतरतीब चित्र
बहुत उदास रंग
घायल सपने
और कभी न मिटने वाली
पीड़ा में तरबतर याद है

फिर भी किया
उस ने प्यार
यह मानते हुए-
कि इन सब से बड़ा है
प्यार का होना,
जिस के लिए
स्वीकार है सब।