भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लोहित बसना / ‘हरिऔध’
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:15, 16 मई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)
हुआ दूर तम पुंज दुरित तम सम्भव भागे।
खिले कमल सुख मिले मधुप कुल को मुँह माँगे।
अनुरंजित जग हुआ जीव जगती के जागे।
परम पिता पद कंज भजन में जन अनुरागे।
छिति पर छटा अनूठी छाई।
चूम चूम करके कलियाँ कमनीय खिलाती।
परम मृदुलता साथ लता बेलियाँ हिलाती।
धमनी में रस रुचिर धार कर प्यार बहाती।
सरस बना कर एक एक तरु दल सरसाती।
वही पवन सुन्दर सुखदाई।
कर नभ तल को लाल दान कर अनुपम लाली।
दिखलाती बहु चाव सहित चारुता निराली।
बनी लालिमा मयी बिपुल तरु की हरियाली।
लिये हाथ में खिले हुए फूलों की डाली।
प्यारी लोहित बसना आई।