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अभिसार-साधना / गोविन्ददास
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कंटक गारि कुसुम सम पदतल मंजिर जीरहि झाँपि।।
पागरि वारि ढारि करि पिच्छल चल तहँ अंगुलि चाँपि।।
माधव ! तुअ अभिसारक लागि।
दुरतर पन्थ गमन धरि साधय मन्दिर यामिनि जागि।।
करयुग नयन मूँदि चलु भाविनि तिमिर पयानक आशे।।
कर-कंगन पन करि सुख-बन्धन शिखय भुजग-गुरू पाशे।।
गुरूजन-वचन वधिर सम मानय आन सुनय कह आन।।
परिजन-वचन मुगुधि सम हासय गोविन्ददास परमान।।