मुनिक शान्तिमय-पर्ण कुटीमे,
तापसीक अचपल भृकुटीमे,
साम श्रवणरत श्रुतिक पुटीमे,
छन अहाँक आवास।
बिसरि गेल छी से हम,
किन्तु न झाँपल अछि इतिहास।।
मुनिक शान्तिमय-पर्ण कुटीमे,
तापसीक अचपल भृकुटीमे,
साम श्रवणरत श्रुतिक पुटीमे,
छन अहाँक आवास।
बिसरि गेल छी से हम,
किन्तु न झाँपल अछि इतिहास।।