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उसके मन में उतरना.. / सुमन केशरी

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उसके मन में उतरना
मानो कुएँ में उतरना था
सीलन-भरी
अन्धेरी सुरंग में

उसने बड़े निर्विकार ढंग से
अंग से वस्त्र हटा
सलाखों के दाग दिखाए
वैसे ही जैसे कोई
किसी अजनान चित्रकार के
चित्र दिखाता है
बयान करते हुए--
एक दिन दाल में नमक डालना भूल गई
उस दिन के निशान ये हैं
एक बार बिना बताए मायके चली गई
माँ की बड़ी याद आ रही थी
उस दिन के निशान ये वाले हैं
ऐसे कई निशान थे
शरीर के इस या उस हिस्से में
सब निशान दिखा
वो यूँ मुस्कुराई
जैसे उसने तमगे दिखाए हो
किसी की हार के...

स्तब्ध देख
उसने मुझे हौले से छुआ..
जानती हो ?
बेबस की जीत
आँख की कोर में बने बाँध में होती है
बाँध टूटा नहीं कि बेबस हारा
आँसुओं के नमक में सिंझा कर
मैंने यह मुस्कान पकाई है

तब मैंने जाना कि
उसके मन में
उतरना
माने कुएँ में उतरना था
सीलन-भरे
अन्धेरी सुरंग में
जिसके तल में
मीठा जल भरा था...