Last modified on 2 जून 2013, at 22:46

कालक नियन्ता आ’ चाह / धीरेन्द्र

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 2 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धीरेन्द्र |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} {{KKCatMaithiliR...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कालक नियन्ता, समयक थर्मससँ, वर्षक एक कप चाह
उझिलिकें पीबि लेलक आ’ गम्भीर भए बैसि रहल।
सोचैत छी हम जे ई चाह जे हम बनौने छलहुँ ओकरा केहेन लगलै’ ?
केहेन लगलै ई चाह ओकरा ? दूध, लीकर, चीनी सभ ठीक छल ने ??
मुदा ओ गम्भीर भए बैसल अछि आ हम ओकर मुँह ताकि रहल छी !
आ ओ हमर कड़ियल बॉस जेकाँ गुम्म भेल बैसल अछि।
हम की करू! दोसर कपक लेल पानि चढ़ा देल अछि!!