भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अहुरिया / धूमकेतु

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:55, 4 जून 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
गुन पर गुन....
गीरह पर गीरह.....
छुच्छ, नग्न आ असल रूपमे की छी
जकरा ‘हम’ कहै छिऐ ?
जे छी सरिपों से छी निश्चित नहि छी
केहन क्रूर वीभत्स भयानक धोखा भेल अछि
आलोकक स्पर्श मात्रसँ सभटा प्रतिमा बिला गेल अछि
विकराल बोध केर धूमकेतु
शत-सहस्त्र ध’-ध’ धधकैत मरकाठी लेने
चिता-पंुज के खोरि-खोरि क’ ताकि रहल छथि
शेष बचल की ?
गीरह पर गीरह पर गीरह....छिटकि गेलैक अछि
गुन पर गुन पर गुन पर गुन.....सभ उघरि गेलैक अछि
तहेतह खरकट्टल सभटा ओदरि गेलैक अछि
जाति-वंश आ माय-बाप आ भाई-बहिन केर
बाध-बोन आ टोल-पड़ोसक
ईर्ष्या-द्वेषक हर्ष-शोककर
हीत-मीत आ प्रीति-रीति केर
आतप-वर्षा-शीत-बसन्तक
बान्हल सक्कत जनम-गेठ सभ छिटकि गेलैक अछि
सत्यवान केर श्वेत प्राण-कण
यमक फाँससँ छहलि गेलैक अछि
अगुणित छिड़िआएल अस्तित्वक कोनो दोगमे
तहेतह सिसोहल जा क’ शेष बँचल की ?
शून्यमे फाड़ल अनाकृत चीछ ??
आकि अनशून्य उद्धिजहीन, उत्तुंग हिम-गिरी-कन्दरामे
औनाइत मूक हाक्रोश ???