भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मयंक / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:03, 6 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रकृति देवि कल मुक्तमाल मणि
गगनांगण का रत्न प्रदीप।
भव्य बिन्दु दिग्वधू भाल का
मंजुलता अवनी अवनीप।
रजनि, सुन्दरी रंजितकारी
कलित कौमुदी का आधार।
बिपुल लोक लोचन पुलकित कर
कुमुदिनि-वल्लभ शोभा सार।1।

रसिक चकोर चारु अवलम्बन
सुन्दरता का चरम प्रभाव।
महिला मुख-मंडल का मंडन
भावुक-मानस का अनुभाव।
रुला रुला कर अवनी-तल को
कर सूना राका का अंक।
काल-जलधि में डूब रहा है
कलाहीन हो कलित मयंक।2।