भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
परिणति / तारानंद वियोगी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:53, 6 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तारानंद वियोगी |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} {{K...' के साथ नया पन्ना बनाया)
बलात्कारक विरूद्ध
एक जोरदार कविता लिखैत छी हम
आ इच्छा करैत छी
जे बलात्कार आब अन्न हुअए !
हम बिसरि जाइ छी जे
बलात्कार करैबला जे हएत
से हमर कविता नहि पढ़त
खूब छी हमहूँ !
चौकी पर ओठंगि क’
कविते टा लिखब खाली
तँ बिसरि ने कोना जाएब ?
बड़ हएब नामी
तँ कहलकै जे अकादमी-कवि हएब !