Last modified on 8 जून 2013, at 21:59

जी की कचट / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:59, 8 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

क्या हो गया, समय क्यों, बे ढंग रंग लाया।
क्यों घर उजड़ रहा है, मेरा बसा बसाया।1।

सुन्दर सजे फबीले,
थे फूल जिस जगह पर।
अब किसलिए वहाँ पर काँटा गया बिछाया।2।

जो बेलि लह लही थी,
जो थी खिली चमेली।
क्यों किस हवा ने उनको बदरंग कर दिखाया।3।

क्यों प्रेम हार टूटा,
क्यों प्रीति गाँठ छूटी।
क्यों फूल से दिलों में छल कीट आ समाया।4।

सुन कर जिसे न थकते,
जो बात रस भरी थी।
किस बेदिली ने उसमें विष बेतरह मिलाया।5।

जो मुँह कि था अनूठा,
था फूल जिससे झड़ता।
अब आग का उगलना किसने उसे सिखाया।6।

जिस आँख में बराबर,
था प्यार ही छलकता।
दिल छीलना उसी को कैसे पसन्द आया।7।

क्यों लाग बन गयी वह,
जो थी लगन कहाती।
क्यों मोम सा कलेजा पत्थर गया बनाया।8|