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कोकिल / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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बने रहते हो मतवाले।
कौन से मद से माते हो।
रात भर जाग जाग कर के।
कौन सा मंत्र जगाते हो।1।

आम की डालों पर बैठे।
बोलते नहीं अघाते हो।
बौर को देख देख कर के।
बावले क्यों बन जाते हो।2।

किस तरह से किस से सीखे।
गले में इतना रस आया।
कौन सा पाठ कंठ कर के।
गला इतना मीठा पाया।3।

बोलियाँ बोल बोल प्यारी।
कान में रस बरसाते हो।
गँवा कर तन की सुधि सारी।
गीत किसका तुम गाते हो।4।

कूकते हो जब कू कू कर।
याद किस की तब आती है।
किसी की छिपी हुई सूरत।
क्या झलक दिखला जाती है।5।

भोर के समय खोल कर दिल।
बोलने तुम क्यों लगते हो।
देख कर ऊषा की लाली।
कौन से रंग में रँगते हो।6।

किसी के कू कू करने से।
किसलिए तुम हो चिढ़ जाते।
लाग में क्यों आ जाते हो।
राग अपना गाते गाते।7।

स्वरों में भर भर कर जादू।
किसे तुम अपना हो लेते।
किस लिए बाँधा बाँधा कर धुन।
कलेजा हो निकाल देते।8।

क्यों तुम्हें चैन नहीं मिलता।
बता दो किस पर मरते हो।
बोल कर के मीठी बोली।
किसे मूठी में करते हो।9।

कंठ पा जाते हैं सुन्दर।
सुरों में जादू भरते हैं।
क्या सभी काले तन वाले।
मोहनी डाला करते हैं।10।