भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लापता हैं मुस्काहनें / राजेश श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:12, 10 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेश श्रीवास्तव }} {{KKCatNavgeet}} <poem>लापत...' के साथ नया पन्ना बनाया)
लापता है मुस्काेनें
आंसुओं के
इश्तओहार हैं
दर्द के महाजन के दोस्तोै हम कर्जदार हैं।
वक्त के थपेड़ों में
फंस गया होगा
सिर से पांव तक शायद धंस गया होगा
हो सकता है ये मौसम
आपको खुशगवार लगे
सच पूछिए तो भंयकर तूफान के आसार हैं।
दर्द के महाजन के दोस्तो हम कर्जदार हैं।
आंसुओं में
जीना भी मजबूरी है
आंसुओं को पीना भी मजबूरी है
बार-बार उन्हींर जख्मोंद को उधेड़कर
बार-बार सीना भी जरूरी है
नहीं पा सकते आप
मेरी घुटन का शतांश भी
आपके तो साहब तहखाने तक हवादार हैं।
दर्द के महाजन के दोस्तो हम कर्जदार हैं।