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बुझे हुए सब तारे / महेश वर्मा
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अपने होने में जो सितारे
कब का बुझ चुके
उनकी रोशनी में जो टिमटिम है
वह रास्तों के मोड़ों की है
यहाँ प्रेमीजन जो सितारे
अपनी प्रेमिकाओं की नज़र कर रहे हैं
हो सकता है ये वही सितारे हों
जो हैं ही नहीं
प्रेमिकाओं की चमकती आँखों के
सितारा उपमान तभी बुझ चुके हों
जब पहले मनुष्य सीख रहे थे प्यार करना
मरते सितारों की चीख सुनने की उनको फुर्सत नहीं थी
तो यहाँ धरती पर मरना भी कोई चीज़ नहीं थी
धरती के भीतर और बाहर
जितना बाक़ी हैं
बहुत पहले मर चुके पूर्वजों की हड्डियाँ
उनके बनाए चित्र और पत्थर के हथियार
ये राह बताने के सितारे हैं
जो बुझे नहीं हैं