Last modified on 16 जून 2013, at 11:01

पीठ पर मेरी भार / वेरा पावलोवा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:01, 16 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वेरा पावलोवा |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <Poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पीठ पर मेरी भार
गर्भ में मेरे एक प्रकाश ।
अब मुझ में रहो,
उगाओ जड़ें ।

जब तुम हो उपरिवत
मुझे हो रहा है भान
विजयी व गर्वित होने का

मानो तुम्हें बाहर निकाल रही हूँ मैं
घेराबंदी से घिरे शहर के बहिरंग ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : सिद्धेश्वर सिंह