भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मुझे बता कर / ख़ालिद कर्रार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:45, 16 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़ालिद कर्रार |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> म...' के साथ नया पन्ना बनाया)
मुझे बता कर
के मेरी सम्त-ए-सफ़र कहाँ है
कई ख़ज़ानों के
बे-निशान नक़्शे
मुझे थमा कर
कहा था उस ने के सातवें दर से और आगे
तुम्हारी ख़ातिर
मेरा वो बाब-ए-बक़ा खुला है
मगर
वहाँ पर तमाम दर वा थे मेरी ख़ातिर
वो सातवाँ दर खुला नहीं था
मगर वहाँ पर
कोई भी राज़-ए-बक़ा नहीं था
तमाम अज्साम थे सलामत
कोई भी ज़िंदा बचा नहीं था
कोई भी मेरे सिवा नहीं था
वहाँ भी कोई ख़ुदा नहीं था