भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेहद ख़ूबसूरत थी हमारी ज़िन्दगी / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:45, 19 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह= }} Category:नवगीत बेहद खूबसूरत थी ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बेहद खूबसूरत थी हमारी ज़िंदगी;
लेकिन अचानक एक दिन
यों बदनुमा … बदरंग कैसे हो गयी?
भूल कर भी;
जब नहीं की भूल कोई
फिर भुलावों-भटकनों में
राह कैसे खो गयी?

रे, अब कहाँ जाएँ,
इस ज़िंदगी का रूप-रस फिर
कब … कहाँ पाएँ?
अधिक अच्छा यही होगा
हमेशा के लिए
चिर-शांति में चुपचाप सो जाएँ!