भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जानती हैं औरतें / कमलेश

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:18, 22 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> एक दिन सा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक दिन सारा जाना-पहचाना
बर्फ़-सा थिर होगा
याद में ।

बर्फ़-सी थिर होगी
रहस्य घिरी आकृति
आँखें भर आएँगी
अवसाद में ।

आएँगे, मँडराते प्रेत सब
माँगेंगे
अस्थि, रक्त, माँस
सब दान में ।

जानती हैं औरतें
बारी यह आयु की
अपनी ।