Last modified on 24 जून 2013, at 00:57

खोई हुई चीज़ें / आशुतोष दुबे

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:57, 24 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आशुतोष दुबे |संग्रह=यक़ीन की आयते...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

खोई हुई चीज़ें जानती हैं
कि हम उन्हें ढूँढ़ रहे हैं
और यह भी
कि अगर वे बहुत दिनों तक न मिलीं
तो मुमकिन है
वे हमारी याद से खो जाएँ

इसलिए कुछ और ढूँढ़ते हुए
वे अचानक हाथ में आ जाती हैं
हमारे जीवन में फिर से दाख़िल होते हुए

हम उन्हें नए सिरे से देखते हैं
जिनके बग़ैर जीना हमने सीख लिया था

जैसे हम एक खोए हुए वक़्त के हाथो
अचानक पकड़े जाते हैं

और ख़ुद को नए सिरे से देखते हैं

जल्दी से आईने के सामने से हट जाते हैं