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डर / आशुतोष दुबे
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पृथ्वी के दो अक्षाँशो पर
अपने-अपने घरों में सोए हुए
दो व्यक्ति
एक जुड़वाँ सपना देखते हैं
यह एक डरावना सपना है
दोनों घबराकर उठ बैठते हैं
दोनों का कण्ठ सूखता है
दोनों पानी पीते हैं
पर शुक्र मनाते हैं
कि जो कुछ भी हुआ
सपने में हुआ
दोनों अगली सुबह अपने
काम पर जाते हैं
सपने को भूल जाते हैं
डर, पृथ्वी के इर्द-गिर्द
एक उपग्रह की तरह
मँडराता है