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गिरे तो क्या हुआ / रविकान्त
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मुसाफिरी से भरा जीवन
जो मिला सो मिला
गलियों में पीछे छूटते बच्चे
जो हुआ सो हुआ
बंधनों पर बंधन
कुछ दिखे कुछ नहीं
कोलाहल और मचलन
जिसने देखा और सहा
अकारण ही चेहरे का रंग
चुआ और झरा
गिरे तो क्या हुआ!
गिरे तो क्या हुआ!