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चाय / रविकान्त
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न जाने कहाँ से आती है पत्ती
हर बार अलग स्वाद की
कैसा-कैसा होता है मेरा पानी!
अंदाजता हूँ चीनी
हाथ खींचकर, पहले थोड़ी
फिर और, लगभग न के बराबर
जरा-सी
कभी डालता हूँ गुड़ ही
चीनी के बजाय
बदलता हूँ जायका
अदरक, लौंग, तुलसी या इलायची से
मुँह चमकाने के लिए महज
दूध की
छोड़ता हूँ कोताही
हर नींद के बाद
खौलता हूँ
अपनी ही आँच पर
हर थकावट के बाद
हर ऊब के बाद