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फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का / महेश चंद्र 'नक्श'
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फ़ाएदा क्या तुम्हें सुनाने का
मौत उनवाँ है इस फ़साने का
हम भी अपने नहीं रहे ऐ दिल
किस से शिकवा करें ज़माने का
ज़िन्दगी चौंक चौंक उट्ठी है
ज़िक्र सुन कर शराब-ख़ाने का
किस की आँखों में आए हैं आँसू
रूख़ बदलने लगा ज़माने का
बर्क़ नज़रों में कूँद उठती है
नाम सुनते ही आश्याने का
‘नक्श’ कश्ती के ना-ख़ुदा वो है
लुत्फ़ है आज डूब जाने का