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रत्नसेन-संतति-खंड / मलिक मोहम्मद जायसी
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जाएउ नागमति नागसेनहि । ऊँच भाग, ऊँचै दिन रैनहि ॥
कँवलसेन पदमावति जाएउ । जानहुँ चंद धरति मइँ आएउ ॥
पंडित बहु बुधिवंत बोलाए । रासि बरग औ गरह गनाए ॥
कहेन्हि बडे दोउ राजा होहीं । ऐसे पूत होहिं सब तोहीं ॥
नवौं खंड के राजन्ह जाहीं । औ किछु दुंद होइ दल माहीं ॥
खोलि भँडारहिं दान देवावा । दुखी सुखी करि मान बढावा ॥
जाचक लोग, गुनीजन आए । औ अनंद के बाज बधाए ॥
बहु किछु पावा जोतिसिन्ह औ देइ चले असीस ।
पुत्र, कलत्र, कुटुंब सब जीयहिं कोटि बरीस ॥1॥
(1) जाएउ = उत्पन्न किया, जना । ऊँचे दिन रैनहि = दिन-रात में वैसा ही बढता गया ।
दुंद = झगडा, लडाई ।