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हिन्‍दोस्‍ताँ के वास्‍ते / जोश मलीहाबादी

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मज़हबी इख़लाक़ के जज़्बे को ठुकराता है जो
आदमी को आदमी का गोश्‍त खिलवाता है जो

फर्ज़ भी कर लूँ कि हिन्‍दू हिन्‍द की रुसवाई है
लेकिन इसको क्‍या करूँ फिर भी वो मेरा भाई है

बाज़ आया मैं तो ऐसे मज़हबी ताऊन से
भाइयों का हाथ तर हो भाइयों के ख़ून से

तेरे लब पर है इराक़ो-शामो-मिस्रो-रोमो-चीं
लेकिन अपने ही वतन के नाम से वाकिफ़ नहीं

सबसे पहले मर्द बन हिन्‍दोस्‍ताँ के वास्‍ते
हिन्‍द जाग उट्ठे तो फिर सारे जहाँ के वास्‍ते