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स्वप्न / सविता सिंह

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किसकी नींद स्वप्न किसका
एक दिन छूट जाने वाली चीज़ें हैं
नदी पहाड़ प्रिय का साथ
प्रेम, हर तरह की याद
स्वप्न और उन्माद

और यह जीवन भी जैसे अपना ही हाथ उलटा पड़ा हुआ
किसी पत्थर के नीचे
इसे सीधा करते रहने का यत्न ही जैसे सारा जीवन
तड़पना पत्थर की आत्मीयता के लिए ज्यूँ सदा
हल्के पाँव ही चलना श्रेयस्कर है इस धरती पर तभी

एक नींद की तरह है सब कुछ
नींद उचटी कि गायब हुआ
स्वप्न-सा चलता यह यथार्थ

वैसे यह जानना कितना दिलचस्प होगा
किसकी नींद है यह
जिसका स्वप्न है यह संसार