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महफिलों में जा के घबराया किये / 'बाकर' मेंहदी
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महफिलों में जा के घबराया किये
दिल को अपने लाख समझाया किये
यास की गहराइयों में डूब कर
ज़ख्म-ए-दिल से ख़ुद को बहलाया किये
तिश्नगी में यास ओ हसरत के चराग़
ग़म-कदे में अपने जल जाया किये
ख़ुद-फ़रेबी का ये आलम था के हम
आईना दुनिया को दिखलाया किये
ख़ून-ए-दिल उनवान-ए-हस्ती बन गया
हम तो अपने साज़ पर गाया किये