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कामना - 2 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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उपजे महारथी प्रभु कोई;
हरे भार भारत-भूतल का भूति लाभ कर खोई।
अनुपम साहस-सलिल-धार से जाय हित-धारा धोई;
उलहे बेलि अलौकिक यश की विजय-अवनि में बोई।
पुलकित बने अपुलकित रह-रह विपुल प्रजा बहु रोई;
आशा-उषा राग-रंजित हो जागे जनता सोई।