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कामना - 3 / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

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विपुल अनुकूल कूल जिसका
है मनोरम मुखरित प्यारा;
जहाँ बहती है सरसा बन
कल्पना-कालिंदी- धारा।
कामना-कुंजें हैं जिसमें
अधिकतर जो है अनुरंजन;
बसो आकर उसमें मोहन,
हमारा मन है वृंदावन।