भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ब्रह्मपुत्र में सूर्यास्त / दिनकर कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:04, 20 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दिनकर कुमार |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> श...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शुक्लेश्वर मन्दिर के बगल में
नार्थ ब्रुक गेट के सामने खड़ा होकर
देख रहा हूँ ब्रह्मपुत्र में सूर्यास्त

नीलाचल पहाड़ी के पीछे धीरे-धीरे
ओझल हो रहे सूरज को
आसमान पर बिखरे हुए गुलाल को
लाल जलधारा को शराईघाट पुल के पास
मुड़ते हुए देख रहा हूँ

रंगों का गुलाल
मेरे वजूद पर भी बिखर गया है
नारी की आकृति वाली पहाड़ी के नीले रंग के साथ
लाल रंग घुल गया है
दूर बढ़ती हुई नाव सुनहरी बन गई है
इस अलौकिक पल की कैद से
मैं मुक्त होना नहीं चाहता

इस रहस्यमयी दृश्यावली से दूर
होकर मैं कहीं नहीं रह सकता