भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
समय के बाहर / शिवकुटी लाल वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:15, 22 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवकुटी लाल वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)
समय मुझे
अपने से बाहर फेंक रहा है
ओह !
कैसा होता है
समय के बाहर फेंक दिया जाना ?
समय के बाहर जीना,
समय के बाहर ही
मर जाना ।