भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये चेहरा पहचाना है / शिवकुटी लाल वर्मा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:27, 22 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवकुटी लाल वर्मा |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)
गली-गली में, डगर-डगर में
भटक रहे सुनसान नयन,
ऐसा क्या वीरान शहर में, जो याराने जैसा है...
बसा अजनबी नज़रों में,
घूर रहा इन्सान यहाँ,
कौन यहाँ है जो पूछे -- यह चेहरा पहचाना है?