Last modified on 23 अक्टूबर 2007, at 19:20

न चाहूं मान / राम प्रसाद बिस्मिल

Ganand (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 19:20, 23 अक्टूबर 2007 का अवतरण (New page: न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।<br> मुझे वर दे यही माता रहू...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना ।

मुझे वर दे यही माता रहूं भारत पे दीवाना ।

करुं मैं कौम की सेवा पडे चाहे करोडों दुख ।

अगर फ़िर जन्म लूं आकर तो भारत में ही हो आना ।

लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूं हिन्दी लिखुं हिन्दी ।

चलन हिन्दी चलूं, हिन्दी पहरना, ओढना खाना ।

भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की ।

स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना ।

लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन ।

करुं में प्रान तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना ।

नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से "बिस्मिल" तुम

उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना ।।