हिज्र मौजूद है फ़साने में
साँप होता है हर ख़जाने में
रात बिखरी हुई थी बिस्तर पर
कट गई सिलवटें उठाने में
रिज़्क़ ने घर सँभाल रक्खा है
इश्क़ रक्खा है सर्द ख़ाने में
रात भी हो गई है दिन जैसी
घर जलाने में शाख़साने में
रोज़ आसेब आते जाते हैं
ऐसा क्या है ग़रीब-ख़ाने में
हो रही है मुलाज़मत ‘फैसल’
राएगानी के कार-ख़ाने में