भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल से ताअत तेरी नहीं होती / 'जिगर' बरेलवी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:37, 27 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='जिगर' बरेलवी }} {{KKCatGhazal}} <poem> दिल से ताअ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल से ताअत तेरी नहीं होती
हम से अब बंदगी नहीं होती

ज़ब्त-ए-ग़म भी मुहाल है हम से
और फ़रियाद भी नहीं होती

रास आती नहीं कोई तदबीर
यास-ए-जावेद भी नहीं होती

दी न जब तक हवा एक शोला-ए-इश्‍क़
ज़िंदगी ज़िंदगी नहीं होती

अल-हज्र तिश्‍नगी-ए-इश्‍क़ ‘जिगर’
हाए तस्कीन ही नहीं होती