Last modified on 29 जुलाई 2013, at 14:04

विधि-विधान / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:04, 29 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’ |स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अकलित कुसुम ललित पल्लवें में मिले,
भावुकता भूल-सी विलोके भाल-अंक में;
समझे तिमिर में अलोचनता लोचन की,
निवसे अकिंचनता कंचन की लंक में।
'हरिऔधा' विधि की है वंकता विदित होती,
पाए गये रंकता करंकी भूत रंक में;
अवलोके सुरसरि मंजु अंक को सपंक,
कलुष कलंक देखे मानस-मयंक में।
कुल-लाल होते हैं अकाल काल-कवलित,
सेंदुर विपुल बालिका का धुल जाता है;
लाखों मालामाल, लाखों पेट हैं न पाल पाते,
लाखों सुखी, लाखों का कपाल कलपाता है।
'हरिऔधा' देव-कुल होता है दलित नित,
फूला-फला दानव का दल दिखलाता है;
अबुधा-अबुधाता विधान है बताता यह,
विबुध भले ही बने बुध न विधाता है।