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कोई हमारे दर्द का मरहम नहीं / 'सिराज' औरंगाबादी
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कोई हमारे दर्द का मरहम नहीं
आशना नहीं दोस्त नहीं हम-दम नहीं
आलम-ए-दीवानगी क्या ख़ूब है
बे-कसी का वहाँ किसी कूँ ग़म नहीं
ख़ौफ़ नहीं तीर-ए-तग़ाफूल सीं तिरे
दिल हमारा भी सिपर सीं कम नहीं
शर्बत-ए-दीदार का हूँ तिश्ना लब
आरज़ू-ए-चश्म-ए-ज़मज़म नहीं
मुझ नज़र में ख़ार है हर बर्ग-ए-गुल
यार बिन गुलशन में दिल ख़ुर्रम नहीं
अश्क-ए-बुलबुल सीं चमन लबरेज़ हैं
बर्ग-ए-गुल पर क़तरा-ए-शबनम नहीं
कौन सी शब है कि माह-रू बिन ‘सिराज’
दर्द के आँसू सीं दामन नम नहीं