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धुँधलका / देवेन्द्र कुमार
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शाम हुई चेहरा दहका
क्या कोई टमाटर पका !
धूप के चुनौटे घर में
खिड़की, दरवाज़े जन्में
चौके का माथा ठनका ।
कुछ इकरंगे, कुछ धागे
कटे खँसी का सिर आगे
मण्डप में मचा तहलका ।
घर को खरगोश मुड़ रहे
पेड़ों के होश उड़ रहे
घुँघरू-सा बजा धुँधलका ।