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फागुन का रथ / देवेन्द्र कुमार
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फागुन का रथ कोई रोके ।
ठूठी शाखें पतियाने लगीं,
घेर-घेर कर बतियाने लगीं,
ऐसे में कौन इन्हें टोके,
फागुन का रथ कोई रोके ।
खेतों की हरियाली बँट गई
फसलें सोना होकर कट गईं,
घर ले जाऊँ किस पर ढो के
फागुन का रथ कोई रोके ।
आओ नदिया तीरे बैठें,
सुस्ता लें फिर अन्दर पैठें,
आते हैं लहरों के झोंके,
फागुन का रथ कोई रोके ।