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सूरज ओ ! / देवेन्द्र कुमार
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मेरे द्वारे उतरो
सूरज ओ !
कैसे घर बादल से छाएँ
रह-रह कर टूटती हवाएँ
हाथ छुड़ा पीछे को भागतीं
मेरे हिस्से पड़ी दिशाएँ
तुम भी ऐसा न करो
सूरज ओ !
आए हो सागर को लाँघ के
मैं हुआ निहाल तुम्हें माँग के
सुख-भरी उदासी यह शाम की
लाए हो, ले जाना टाँग के
चाँद की क़सम
ठहरो
सूरज ओ !
मेरे द्वारे उतरो
सूरज ओ !
मौसम का साथ दिया
डाल ने
पेड़ लगे पत्तियाँ
उछालने
हाथ लगी किरणों की डोरियाँ
आ तुम्हें झुलाऊँ
धूप-पालने
बैठो कुछ बात करो
सूरज ओ !
मेरे द्वारे उतरो
सूरज ओ !