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वासना / धनंजय वर्मा

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आँच में तपकर
दूध उफना
आग ने पी लिया
एक सोंधी महक
माहौल में समा गई ।

वासना का ज्वार
संयम की सीमाएँ तोड़
उफना
दमित आकांक्षा ने तृप्ति पाई
एक दर्द मीठा-सा
मन में जगा
भला लगा ।

दूध चुक गया
वासना बुझ न पाई...।