Last modified on 16 अगस्त 2013, at 11:34

सूना आकाश / प्रांजल धर

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 16 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रांजल धर |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> जब भ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब भी देखा है शिराय लिली को
उखरूल याद आ गया है
छोटे-से हृदय के भीतर मानो
माजुली समा गया है ।
लोहित, सरमती, मानस, काजीरंगा
हाथी, बाघ, गैंडे और कमीज़ की बाईं बाँह पर बैठा
पूर्वोत्तर का लाचार पतंगा !

बैकाल के ओल्खोन से कम नहीं है
न ही ‘महानायक’ के सुपीरियर या
मिशिगन वाले ‘ग्रेट लेक्स’ के गीत से
न ही किसी अमेरिकी राष्ट्रपति के
स्वर्णिम अतीत से !
न ही होलीफ़ील्ड-टायसन की कुश्ती से
और न ही
माइकल जैक्सन या गोरी नायिकाओं के
कानफोड़ू संगीत से !

तेजू के पास का परशुराम कुण्ड
संतरे, अनन्नास और ताम्बुल के पेड़
ह्वेनसांग के चबूतरे पर सुन्दर पक्षियों का
मनमोहक झुण्ड ।

ब्रह्मपुत्र और बराक की घाटियों में
महसूस की है एक भयंकर प्यास -–
इतना सूना भी नहीं रहा करता था ये आकाश !