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सूखे होंठों की प्यास / ओसिप मंदेलश्ताम
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सूखे होंठों की प्यास | |
रचनाकार: | ओसिप मंदेलश्ताम |
अनुवादक: | अनिल जनविजय |
प्रकाशक: | --शिल्पायन प्रकाशन,10295, लेन नम्बर-1, वैस्ट गोरखपार्क, शाहदरा, दिल्ली-110032 |
वर्ष: | --2006 |
मूल भाषा: | रूसी |
विषय: | -- |
शैली: | -- |
पृष्ठ संख्या: | --60 |
ISBN: | --81-87302-77-1 |
विविध: | --(मूल रूसी भाषा से अनूदित) |
इस पन्ने पर दी गयी रचनाओं को विश्व भर के योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गयी प्रकाशक संबंधी जानकारी प्रिंटेड पुस्तक खरीदने में आपकी सहायता के लिये दी गयी है। |
- लो, ख़ुश रहो उठाकर तुम, / ओसिप मंदेलश्ताम
- भटक रही है आग भयानक / ओसिप मंदेलश्ताम
- सुनता हूँ तुम्हारा उच्चारण भास्वर / ओसिप मंदेलश्ताम
- कसान्द्रा / ओसिप मंदेलश्ताम
- ईर्ष्यालु शुष्क-होंठों पर मेरे / ओसिप मंदेलश्ताम
- जा रही है बेमन से, अनुपम मीठी है चाल / ओसिप मंदेलश्ताम
- गीली धरती की सहोदरा / ओसिप मंदेलश्ताम
- हाथ पकड़ कर रख नहीं पाया / ओसिप मंदेलश्ताम
- गुदगुदाती है ठंड हमें और हँसता है अंधेरा / ओसिप मंदेलश्ताम
- बस्ती के उस पार से तो कभी वनों के पीछे से / ओसिप मंदेलश्ताम
- मुझे नहीं मालूम, बंधु कब से / ओसिप मंदेलश्ताम
- छह पंखों वाले भयानक बैल-सा अकड़कर / ओसिप मंदेलश्ताम
- मैं अपने शहर लौट आया / ओसिप मंदेलश्ताम
- पहाडों में निष्क्रिय है देव / ओसिप मंदेलश्ताम
- हर पल मैं देखूँ, मित्रों,बस एक यही सपन / ओसिप मंदेलश्ताम
- नाशपतियों और बेरियों ने निशाना साधा है मुझ पर / ओसिप मंदेलश्ताम
- कोड़ों की सख़्त मार से, कन्धे तेरे / ओसिप मंदेलश्ताम
- / ओसिप मंदेलश्ताम
- / ओसिप मंदेलश्ताम
- / ओसिप मंदेलश्ताम
- / ओसिप मंदेलश्ताम
- / ओसिप मंदेलश्ताम