भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोर हीरा हिराइल बा किंचड़े में / कबीरदास
Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:57, 24 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कबीरदास }} {{KKCatPad}} <poem>तोर हीरा हिराइल ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
तोर हीरा हिराइल बा किंचड़े में।। टेक।।
कोई ढूँढे पूरब कोई पच्छिम, कोई ढूँढ़े पानी पथरे में।। 1।।
सुर नर अरु पीर औलिया, सब भूलल बाड़ै नखरे में।। 2।।
दास कबीर ये हीरा को परखै, बाँधि लिहलैं जतन से अँचरे में।। 3।।