Last modified on 28 अगस्त 2013, at 00:51

मुहाने पर नदी और समुद्र-6 / अष्‍टभुजा शुक्‍ल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:51, 28 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अष्‍टभुजा शुक्‍ल |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नदी
ऊपर से नीचे
गिरती रही लगातार
बदलती रही
अपना रूप-स्वरूप
और बहती रही

दिशाहीन रहा समुद्र
समूचा जोर लगाकर
चाह रहा था बहना
लेकिन गरज-तरज कर
रह जाता
अपनी मर्यादाओं में
कौन समझता
उसका कहना और उछलना

नदी, नदी थी
तो समुद्र, समुद्र