भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बार एक कतरा आँसू का / ख़ुर्शीद अकरम
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:50, 28 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ख़ुर्शीद अकरम }} {{KKCatNazm}} <poem> एक सच्ची ...' के साथ नया पन्ना बनाया)
एक सच्ची कहानी
जब धकेल दी जाती है
किसी फ़िल्मी क्लाइमेक्स की तरफ़
अपना मुँह छुपा लेता है सूरज
फीके चाँद की ओट में
एक दूसरे के गिर्द घूमते कबूतर
मग़्मूम हो कर बैठ जाते हैं
परों में मुँह दे कर
और धरती तय्यारी करती है
बार उठाने की
एक क़तरा आँसू का