भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

लहर / निलिम कुमार

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:04, 1 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निलिम कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरें पानी में उठ रही हैं
रजत-सुनहरी लहरें

लहरें मछलियों में बदल गई हैं

लहरें प्रतिकूल दिशा में बह रही हैं
जाल और फंदों से आदमी लहरों को पकड़ रहे हैं

टोकरियाँ लहरों से भरी गई हैं
लहर-रक्त से सने हैं माँस छीलने के चाकू

लहरें दमक रही हैं
नमक और हल्दी की रंगत से

औरतें लहरों से दोपहर पका रही हैं
कटोरे लहरों में छलछला आए हैं

लहरें जा रही हैं
मनुष्यों के पेट में

एक असम्भव कविता की तरह
रजत-सुनहरी लहरें ।