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शाम / निलिम कुमार
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पुस्तकालय में एक शाम मरी हुई है
जिस शाम ने कल
मृतक तारों की पहाड़ी पर खड़े होकर
दो बूँद खून मुझसे माँगा था
कल नहीं जानता था मैं
उस शाम, उस पहाड़ और शाम के रहस्य को
आज इन किताबों के बीच
एक शाम मरी हुई है
जिस शाम के नीचे
क्षण भर के लिए
जी उठती है वह पहाड़ी
और मेरी चेतना में मृत्यु